आज अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस है। मतलब अबतक की चली आ रही परंपरा के अनुसार एक इवेंट। सालगिरह टाइप का! यदि इसे इवेंटनुमा तरीक़े से देखा जाए तो बधाई तो बनती ही है। मतलब कुछ 'हार्दिक बधाई' या 'हार्दिक शुभकामना' जैसे परंपरागत परन्तु पॉप्युलर (शायद थोड़े प्रोग्रेसिव भी) जूमलों को आसमान में तो उछाला जाना ही चाहिए। और इस तरह इस वार्षिक इवेंट का इतिश्री रेवा खण्डे समाप्तः; बिल्कुल हिन्दी दिवस व पखवाड़े की तरह! वैसे इन जूमलों से कुछ हो ना हो परन्तु थोड़ी जनजागृति व थोड़ा माहौल तो बन ही जाता है और माहौल का अपना ही अंतर्निहित सुख होता है! शायद स्वार्गिक!
मेरी मातृभाषा भोजपुरी है परन्तु मेरी मातृभाषा भोजपुरी है इसे जानने के लिए मुझे बीस साल का होना पड़ा। ये तो भला हो इस दिल्ली का जिसने मेरे ऊपर ये महत्त्वपूर्ण एहसान कर मेरे ज्ञान का अद्यतन किया, नहीं तो शायद मैं इस तथ्य को कभी जान ही नहीं पाता! उसके पहले तक तो मुझे यही पता था कि हिन्दी ही मेरी मातृभाषा है!
मुझे नहीं पता मैं इसे क्या नाम दूँ? उदासीनता या फिर हीनता का बोध! परन्तु इस सब के बीच विशेष और चिन्तनीय तथ्य ये है कि आज भी करोड़ों लोगों को पता ही नहीं कि भोजपुरी उनकी मातृभाषा है। इतना ही नहीं बल्कि भोजपुरी भाषी पढ़ा-लिखा मध्यम वर्ग अपने बच्चों को अक्सर ये बताता ही नहीं है कि भोजपुरी उनकी मातृभाषा है। उनके घरों की बोलचाल की भाषा या तो हिन्दी है या फिर अँग्रेजी (अपनी शिक्षा, क्षमता, जरूरत व कई बार दिखावा के अनुसार)।
यदि सचमुच हम भोजपुरी या अपनी मातृभाषा को लेकर गंभीर हैं तो हम सोशल मीडिया पर भोजपुरी में पोस्ट लिखें या ना लिखें परन्तु अपने बच्चों से भोजपुरी (मातृभाषा) में बात उन्हें उनकी मातृभाषा सिखाएँ। बदली समाज व्यवस्था में सरकार का अहम रोल है परन्तु सिर्फ सरकार को दोष देकर अपनी ज़िम्मेदारी को समाप्त ना समझें। नहीं तो अन्य भाषाएँ प्राकृतिक रुप से मूल मातृभाषा का स्थान ले ही लेगीं। इसलिए यदि संभव हो तो इस इवेंट मोड से बाहर निकलकर अपनी मातृभाषा (अथाह ज्ञान व संस्कृति) को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक प्राकृतिक तरीके से हस्तांतरित करें।
मुझे नहीं पता मैं इसे क्या नाम दूँ? उदासीनता या फिर हीनता का बोध! परन्तु इस सब के बीच विशेष और चिन्तनीय तथ्य ये है कि आज भी करोड़ों लोगों को पता ही नहीं कि भोजपुरी उनकी मातृभाषा है। इतना ही नहीं बल्कि भोजपुरी भाषी पढ़ा-लिखा मध्यम वर्ग अपने बच्चों को अक्सर ये बताता ही नहीं है कि भोजपुरी उनकी मातृभाषा है। उनके घरों की बोलचाल की भाषा या तो हिन्दी है या फिर अँग्रेजी (अपनी शिक्षा, क्षमता, जरूरत व कई बार दिखावा के अनुसार)।
यदि सचमुच हम भोजपुरी या अपनी मातृभाषा को लेकर गंभीर हैं तो हम सोशल मीडिया पर भोजपुरी में पोस्ट लिखें या ना लिखें परन्तु अपने बच्चों से भोजपुरी (मातृभाषा) में बात उन्हें उनकी मातृभाषा सिखाएँ। बदली समाज व्यवस्था में सरकार का अहम रोल है परन्तु सिर्फ सरकार को दोष देकर अपनी ज़िम्मेदारी को समाप्त ना समझें। नहीं तो अन्य भाषाएँ प्राकृतिक रुप से मूल मातृभाषा का स्थान ले ही लेगीं। इसलिए यदि संभव हो तो इस इवेंट मोड से बाहर निकलकर अपनी मातृभाषा (अथाह ज्ञान व संस्कृति) को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक प्राकृतिक तरीके से हस्तांतरित करें।
राजीव उपाध्याय
बधाई हो।
जवाब देंहटाएंसादर आभार सर
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