बुधवार, 20 जनवरी 2021

चाँद है ज़ेरे क़दम, सूरज खिलौना हो गया - अदम गोंडवी

चाँद है ज़ेरे क़दम सूरज खिलौना हो गया
हाँ, मगर इस दौर में क़िरदार बौना हो गया।

शहर के दंगों में जब भी मुफलिसों के घर जले
कोठियों की लॉन का मंज़र सलौना हो गया।

ढो रहा है आदमी काँधे पे ख़ुद अपनी सलीब
ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा जब बोझ ढोना हो गया।

यूँ तो आदम के बदन पर भी था पत्तों का लिबास
रूह उरियाँ क्या हुई मौसम घिनौना हो गया।

'अब किसी लैला को भी इक़रारे-महबूबी नहीं'
इस अहद में प्यार का सिम्बल तिकोना हो गया।
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8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 21.01.2021 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
    धन्यवाद

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  2. आदम साहब लाकों में एक हैं ... और उनकी शायरी कमाल है ...

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    1. जी। सही बात है। लोक की आवाज हैं और उनकी शायरी हमेशा ही समकालीन लगती है।

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