शनिवार, 21 मार्च 2020

पहचान - अमृता प्रीतम


तुम मिले
तो कई जन्म
मेरी नब्ज़ में धड़के
तो मेरी साँसों ने तुम्हारी साँसों का घूँट पिया
तब मस्तक में कई काल पलट गए!

एक गुफा हुआ करती थी
जहाँ मैं थी और एक योगी

योगी ने जब बाजुओं में लेकर
मेरी साँसों को छुआ
तब अल्लाह क़सम!
यही महक थी जो उसके होठों से आई थी--
यह कैसी माया कैसी लीला
कि शायद तुम ही कभी वह योगी थे
या वही योगी है...
जो तुम्हारी सूरत में मेरे पास आया है
और वही मैं हूँ...
और वही महक है...
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अमृता प्रीतम

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