डाकिए ने
थाप दी हौले से
आज दरवाजे पर मेरे
कि तुम्हारा ख़त मिला।
तुमने हाल सबके सुनाए
ख़त-ए-मजमून में
कुछ हाल तुमने ना मगर
अपना सुनाया
ना ही पूछा
किस हाल में हूँ?
बता क्या जवाब दूँ मैं तुमको?
या घर की ख़बर सुना दूँ?
कि मेरे बालों की चाँदी तरह ही
बहुत पुराना हो गया है
कि साँस उसकी
अब उखड़ने सी लगी है।
कि तुम्हारा ख़त मिला।
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राजीव उपाध्याय
"ना हाल अपना सुनाया और ना मेरा ही पूछा" खत लिखा, वाह
जवाब देंहटाएंसादर धन्यवाद सर्।
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 18 दिसम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंस्थान देने के लिए सादर आभार।
हटाएंबहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंसादर।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (19-12-2019) को "इक चाय मिल जाए" चर्चा - 3554 पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सादर धन्यवाद सर।
हटाएंअंतरमन से उकेरी बेहतरीन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसादर
सादर धन्यवाद।
हटाएंगहराई से उभरे एहसास।
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन।
सादर आभार
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