ऐसा लगता है ज़िन्दगी तुम हो
अजनबी जैसे अजनबी तुम हो।
अब कोई आरज़ू नहीं बाकी
जुस्तजू मेरी आख़िरी तुम हो।
मैं ज़मीं पर घना अँधेरा हूँ
आसमानों की चांदनी तुम हो।
दोस्तों से वफ़ा की उम्मीदें
किस ज़माने के आदमी तुम हो।
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बशीर बद्र
साभार: कविता कोश
चर्चा में स्थान देने के लिए सादर धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंवाह !बेहतरीन 👌
जवाब देंहटाएंसादर
सादर धन्यवाद
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