ढूँढ रहा हूँ जाने कब से
धुँध में प्रकाश में
कि सिरा कोई थाम लूँ
जो लेकर मुझे उस ओर चले
जाकर जिधर
संशय सारे मिट जाते हैं
और उत्तर हर सवाल का
सांसों में बस जाते हैं।
पर जगह कहां वो
ये सवाल ही
अभी उठा नहीं
की आदमी अब तक अभी
खुद से ही मिला नहीं।
---------------------
राजीव उपाध्यायधुँध में प्रकाश में
कि सिरा कोई थाम लूँ
जो लेकर मुझे उस ओर चले
जाकर जिधर
संशय सारे मिट जाते हैं
और उत्तर हर सवाल का
सांसों में बस जाते हैं।
पर जगह कहां वो
ये सवाल ही
अभी उठा नहीं
की आदमी अब तक अभी
खुद से ही मिला नहीं।
---------------------
चर्चा में शामिल करने लिए आपको हार्दिक धन्यवाद राजेन्द्र जी। आभार!
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना, "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 29 जनवरी 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी रचना राजीव जी.
जवाब देंहटाएंAnil Sahu