गुरुवार, 31 दिसंबर 2015

याद है तुम्हें? - नवीन कुमार 'नीरज'

याद है तुम्हें?
हर रोज हम उस सड़क पर घूमने जाया करते थे?
वही सड़क जो बहुत दूर तक जाती थी।
हमने सुना था, बहुत दूर वह किसी दूसरे देश तक जाती थी।
वह सड़क बागों के बीच से होकर गुज़रती थी।
शायद इस दुनिया में कोई और सड़क बागों के बीच से होकर नहीं गुज़रती ---
जो इतनी लंबी हो और बहुत दूर किसी दूसरे देश तक जाती हो।
अकसर ही हम अपनी कल्पनाओं में उस देश में पहुंच जाया करते थे।
जहाँ हम अपने मन से चीज़ें गढ़ते रहते थे।

याद है तुम्हें?
हम कैसे-कैसे घर बनाया करते थे?
हम झोपड़ी से लेकर महल तक बनाया करते थे।
झोपड़ी भी उतनी ही सुंदर होती थी, जितने कि महल।
वहाँ के लोग कितने निराले होते थे, बिल्कुल हमारे मन की तरह।
वे बहुत प्यारे होते थे और बहुत सुंदर भी।
वे हमेशा खुश रहते थे।
वे सभी जीवन का उत्सव मनाते रहते थे।
वे हमेशा हँसते, गाते, गुनगुनाते रहते थे।
वे हमेशा प्यार के गीत गाया करते थे।
वे एक-दूसरे का हाथ थामे, सड़कों पर घूमते हुए गाया करते थे।
उस देश में कितने रंग-बिरंगे फूल थे!
देखो तो बस देखते रह जाओ!
हम उसे साथ-साथ निहारा करते थे।
और अकसर ही हम उसमें खो जाते थे।
उन फूलों पर कितने सुंदर भँवरें मंडराते रहते थे!
जो अपनी धुन में गीत गाते हुए फूलों को रिझाते रहते थे।
हम उस भँवरें की अदा को देख-देखकर मुसकराते थे।
तब तुम मेरी आँखों में झांकती थी और कितने प्यार से मुसकराती थी!
फिर तुम मेरे कांधे से सिर टिका कर आँख बंद कर लेती थी।
और फिर मेरी बांहों का सहारा लिए मेरे साथ चलती थी।
और हम सिर्फ चलते रहते थे।
हम उस सड़क पर चलते रहते थे, जो बहुत दूर तक जाती थी।
या फिर उस दूसरे देश की सड़क पर जिसे हमने गढ़े थे।

याद है तुम्हें?
लोग हमें साथ-साथ चलते देखकर कितने प्यार से मुसकराते थे?
जब वे हमारे बगल से गुज़रते, झुक कर हमारा अभिवादन करते।
ऐसे ही तो हम उस सड़क पर चलते हुए प्यार बाँटा करते थे।
हम चलते हुए या बैठे हुए कितनी सुंदर कहानियाँ गढ़ लिया करते थे।
हम इंद्र धनुष से भी सुंदर और प्यारी कहानियाँ गढ़ लेते थे।
उन कहानियों में बच्चे से लेकर बूढ़े तक, सबका जिक्र हुआ करता था।
जिसमें सभी हँसते और गाते रहते थे।
उन कहानियों में कोई रोता नहीं था।
वे कितनी सुंदर कहानियाँ होती थी!
और लोग भी कितने सुंदर होते थे!
उनकी आँखों में नूर बसता था।
हमेशा उनका चेहरा खिला होता था,
जैसे वे हमेशा प्रेम में ही डूबे रहते हों।
हम अपनी कहानियों में सबसे सुंदर बूढ़े दंपत्तियों को गढ़ते थे।
जो एक-दूसरे के साथ धीरे-धीरे सड़क पर चला करते थे।
जब वे थक जाते, किसी सुंदर बाग़ में बैठ, चिड़ियों के गीत सुना करते।
वे पास से गुज़रते युगल प्रेमी को देख मुसकराते, जैसे उन्हें कुछ याद हो आया हो।
ऐसे वक्त में अकसर ही वे किन्हीं खयालों में डूब जाते थे,
वे एक-दूसरे के बगल में बैठे होते थे --- एक-दूसरे को सहारा दिए हुए।
हम अकसर ही ऐसे दंपत्तियों को बहुत ग़ौर से देखते रहते थे।
हम उन्हें देखते हुए सोचने लग जाते थे, वे एक-दूसरे से कैसे मिले होंगे?
कैसे उन्होंने एक-दूसरे से प्यार का इज़हार किया होगा?
उन्होंने एक-दूसरे से क्या कहा होगा?
और फिर हम एक नई कहानी गढ़ लेते थे।
ऐसे ही हम कहानी से कहानियाँ गढ़ते रहते थे।
एक-के-बाद-एक सुंदर और प्यारी-प्यारी कहानियाँ,
जिसमें सिर्फ प्यार-ही-प्यार होता था,
जिसमें जीवन और प्यार के गीत होते थे।
ऐसे ही तो हम गीत भी गढ़ते रहते थे।
न जाने कितने गीत हमने ऐसे ही गढ़े थे,
जिसे हम अकसर गाया करते थे --- तुम और मैं।
हाँ, हमने उस सड़क पर चलते हुए बहुत से गीत गाए थे।

याद है तुम्हें?
जब हम कभी चुप रहते, बच्चे हमसे कैसे ज़िद करते थे?
कैसे हमसे कोई गीत सुनाने को कहते थे?
हम उन्हें देखकर मुसकराते थे।
हम जानते थे उन बच्चों को किसने भेजा था।
फिर हम एक-दूसरे की आँखों में झांकते और गाने लगते थे।
धीरे-धीरे हमारे साथ बहुत-से लोग गाने लगते थे,
बच्चे, बूढ़े, जवान, प्रेमी-प्रेमिका, पति-पत्नी --- सभी गाते थे।
हम सब मिलकर गाते थे।
वहाँ के फूल भी गाते थे, पेड़ और पौधे भी, तने और पत्ते भी।
हवा भी, धरती और आकाश भी।
वह सड़क भी।
याद है तुम्हें?
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1 टिप्पणी:

  1. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (01.01.2016) को " मंगलमय नववर्ष" (चर्चा -2208) पर लिंक की गयी है कृपया पधारे। वहाँ आपका स्वागत है, नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें, धन्यबाद।

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