शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2015

हक़ीकत नहीं ये, ना ही फसाना है - राजीव उपाध्याय

हक़ीकत नहीं ये, ना ही फसाना है
बस ख्वाबों में मेरा, आना-जाना है॥

लोगों की बातें मैं सुनता नहीं
अपना कहा मैं करता नहीं
अब होने ये क्या लगा है
दिल ही नहीं ये, ना ही मयखाना है।
बस ख्वाबों में मेरा, आना-जाना है॥

जब आसमां से उतर, जमीं देखता हूँ
सड़क है ना पगडंडी, ना पग के निशां
ढूँढू तो ढूँढू, आशियां अपना कैसे
राह-ए-डगर को जो रूक जाना है।
हक़ीकत नहीं ये, ना ही फसाना है॥ 
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12 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. आपका प्रोत्साहन सदैव मिलता रहा है। धन्यवाद

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  2. दूरी अखरती है तो ख्वाब में बदलती है
    बहुत सुन्दर

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    उत्तर
    1. जी यहीबात बहुत हद तक कहने की कोशिश रही है यह। धन्यवाद

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  3. अनुग्रह हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद

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