हक़ीकत नहीं ये, ना ही फसाना है
बस ख्वाबों में मेरा, आना-जाना है॥
लोगों की बातें मैं सुनता नहीं
अपना कहा मैं करता नहीं
अब होने ये क्या लगा है
दिल ही नहीं ये, ना ही मयखाना है।
बस ख्वाबों में मेरा, आना-जाना है॥
जब आसमां से उतर, जमीं देखता हूँ
सड़क है ना पगडंडी, ना पग के निशां
ढूँढू तो ढूँढू, आशियां अपना कैसे
राह-ए-डगर को जो रूक जाना है।
हक़ीकत नहीं ये, ना ही फसाना है॥
बस ख्वाबों में मेरा, आना-जाना है॥
लोगों की बातें मैं सुनता नहीं
अपना कहा मैं करता नहीं
अब होने ये क्या लगा है
दिल ही नहीं ये, ना ही मयखाना है।
बस ख्वाबों में मेरा, आना-जाना है॥
जब आसमां से उतर, जमीं देखता हूँ
सड़क है ना पगडंडी, ना पग के निशां
ढूँढू तो ढूँढू, आशियां अपना कैसे
राह-ए-डगर को जो रूक जाना है।
हक़ीकत नहीं ये, ना ही फसाना है॥
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बढ़िया
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंसुंदर !
जवाब देंहटाएंआपका प्रोत्साहन सदैव मिलता रहा है। धन्यवाद
हटाएंउत्कृष्ट प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंदूरी अखरती है तो ख्वाब में बदलती है
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जी यहीबात बहुत हद तक कहने की कोशिश रही है यह। धन्यवाद
हटाएंबहुत सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनन्या जी
हटाएंधन्यवाद राजीव जी
जवाब देंहटाएंअनुग्रह हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद
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