हर लम्हे की अपनी कहानी होती है भले ही वो लम्हा हमारी नज़रों में कितना ही छोटा या फिर बेवजह ही क्यों ना हो पर उसके होने में वजह और सबब दोनों ही होता है। उसका होना ही इस बात की गवाही है। पर हम उन चीजों के होने से ही इत्तेफाक़ रखते हैं जो हममें इत्तेफाक़ रखते हैं। कितना दे सकता है और कितना ले सकता है शायद इतना ही कारोबार है। पर इसके परे एक बहुत बड़ी दुनिया है; शायद सबसे बड़ी जो ना आँखों से बयाँ होती है और ना ही बेवश शब्दों से। होती है तो बस सांसो से। कुछ ऐसी ही बातें ये मन के मनके कहना चाहते हैं।
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चूम लिय माँ ने लगा कर गले से
हर बला मेरे सर से टल गयी
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हर बला मेरे सर से टल गयी
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शिकवा करते कट गयी उम्र सारी
बता खूबियों से क्या दुश्मनी थी
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बता खूबियों से क्या दुश्मनी थी
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नुमाइश पर उतर जाएँ जब राज़ आपके
छिपाने से भी वो राज़ छिपाए नहीं जाते
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छिपाने से भी वो राज़ छिपाए नहीं जाते
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समझ से सुलझा लेती थी अम्मा हर बात
दूर रखा था गृहस्थी को हर तक़रार से
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दूर रखा था गृहस्थी को हर तक़रार से
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उतरी नहीं जो निगाहों से पिलाई थी तुमने
लड़खड़ाये क़दम चला जा रहा हूँ
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लड़खड़ाये क़दम चला जा रहा हूँ
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पालना बेशक़ तू हर शौक अपने,
पूरी करने की ज़िद में राख़ न हो जाना
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पूरी करने की ज़िद में राख़ न हो जाना
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आपस में मिलने लगे हैं हर चेहरे आजकल,
क्या एक ही सांचे में सबको ढाला जा रहा है
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क्या एक ही सांचे में सबको ढाला जा रहा है
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कल कुछ अच्छा होगा कल कुछ बेहतर होगा
कितने कल गुजर जाते हैं लोगों के इस आस में
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कितने कल गुजर जाते हैं लोगों के इस आस में
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बिकने पर आमादा हो जाये मंडी
कुछ इस तरह से सौदा खरा कर
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कुछ इस तरह से सौदा खरा कर
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बिक गयी एक शेर पर ही महफ़िल सारी
पूरी ग़ज़ल सुनते तो क्या हो जाता
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पूरी ग़ज़ल सुनते तो क्या हो जाता
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अश्क ख़ुद गिर पड़े क़दमों में उनके
मेरे पास पूजने को पानी नहीं था
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मेरे पास पूजने को पानी नहीं था
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दे-दे के वास्ता सीता का हर बार
अपनी तमन्नाओं को लोग सुलाते रहे
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अपनी तमन्नाओं को लोग सुलाते रहे
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समेट कर एक दायरे सा
ज़िन्दगी को रुमाल कर दिया है
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ज़िन्दगी को रुमाल कर दिया है
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एक हादसा है ज़िन्दगी
हर दिन घट रही है
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हर दिन घट रही है
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जोश जगा कर चमका लो जंग पड़े हथियारों को
क्यों हाथ बांधे हम देखें देश के इन गद्दारों को
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क्यों हाथ बांधे हम देखें देश के इन गद्दारों को
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घूरती है जिस्म को लालची निगाहें
कोई तो नज़र हो जो रूह को छूले
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कोई तो नज़र हो जो रूह को छूले
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तेरे हुनर के क़द सा कुछ भी नहीं,
तुझ पर लिखूं भी तो क्या लिखूं माँ
तुझ पर लिखूं भी तो क्या लिखूं माँ
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खरीदार तो मिला था ,
गौहर बिक नहीं पाये
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नाज़ हुआ ज़िन्दगी पर जिसे
अगले ही पल वो फ़ना हो गया
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क्या कहा जाये इसे शर्मिन्गी
जब बाप ही बच्चों से डरने लगे ?
खरीदार तो मिला था ,
गौहर बिक नहीं पाये
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नाज़ हुआ ज़िन्दगी पर जिसे
अगले ही पल वो फ़ना हो गया
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क्या कहा जाये इसे शर्मिन्गी
जब बाप ही बच्चों से डरने लगे ?
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रजनी मल्होत्रा (नैय्यर)जन्म: ७ जून, कुमंदी ग्राम, पलामू, झारखण्ड
चार काव्य संग्रह: 'स्वप्न मरते नहीं ', 'ह्रदय तारों का स्पन्दन', 'पगडंडियाँ' व 'मृगतृष्णा'
विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं में प्रकाशित
अनेकों पुरस्कार
भाषा लेखन: हिंदी, पंजाबी, उर्दू.
लेखन: गीत, ग़ज़ल, कहानियां व कविताएँ.
शिक्षा: हिंदी व इतिहास में स्नातकोत्तर। हिंदी में पी.एच. डी. चल रही।
सम्प्रति: संगणक विज्ञान की शिक्षिका
वर्तमान पता: बोकारो (झारखण्ड)
मोबाइल नं: 9576693153, 9470190089
Shukriya Rajeev Bhai .........
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