रविवार, 13 दिसंबर 2015

कुछ आँसू - राजीव उपाध्याय

मिरी आँखों से कुछ आँसू
ऐसे भी रिसते हैं
जो किसी को दिखते नहीं
और शायद
अब उनका कोई मतलब भी नहीं।

पर इतना यकीन
मुझको मेरे
आँसुओं के बह जाने में है
कि साँसे भी मेरी
कई बार फीकी पड़ जाती हैं
और मेरे होने की वजह भी 
उन आँसुओं तक चली आती है।
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